चैत्र नवरात्र जानें कलश स्थापना की विधि और मंत्र विस्तार से / Chaitra Navratri Kalash Sthapana Vidhi Mantra

25 मार्च से चैत्र नवरात्र की शुरुआत हो रही है। इस वर्ष नवरात्र का आरंभ बुधवार से हो रहा है जिससे माता का आगमन नाव पर हो रहा है। शास्त्रों में कहा गया है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन मां दुर्गा की पूजा का संकल्प लेकर कलश स्थापित करना चाहिए फिर श्रद्धा भाव से माता की पूजा करनी चाहिए। इस वर्ष शुभ संयोग की बात यह है कि नवरात्र में पूरे नौ दिनों तक माता की पूजा होगी।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि का आरंभ 24 मार्च को 2 बजकर 57 मिनट से है जो अगले दिन यानी 25 मार्च को शाम 5 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। शास्त्रों का नियम है कि जिस तिथि में सूर्योदय होता है उसी तिथि का मान होता है। इसलिए 25 मार्च को सूर्योदय के समय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि होने से इसी दिन से नवरात्र आरंभ हो रहा है और कलश स्थापना की जाएगी।

चैत्र शुक्ल नवरात्र कलश स्थापना मुहूर्त

इस वर्ष नवरात्र में कलश स्‍थापित करने का सबसे उत्तम समय ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 5 बजे से 6 बजकर 30 तक है। इसके बाद सुबह 8 बजकर 30 मिनट से दोपहर 12 बजकर 45 तक कलश स्‍थापना की जा सकती है। जो लोग इस समय तक कलश नहीं स्‍थापित कर पाते हैं वह शाम में 3 बजकर 30 मिनट तक यह शुभ कार्य कर सकते हैं।

कलश स्थापना सामग्री

मिट्टी, पीतल, तांबा या फूल का एक घड़ा। जौ, तिल, सप्तमृतिका, सर्वोषधि, शहद, लाल वस्त्र, कुमकुम, पानी वाला नारियल, दीप, रोली, सुपारी, गंगाजल, आम का पल्लव, सिक्का, पान का पत्ता।

कलश स्थापना मंत्र

नवरात्र में कलश स्थापित करने वाले को सबसे पहले पवित्र होने के मंत्र- ओम अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ हाथ में कुश और जल लेकर इस मंत्र को पढ़कर स्वयं को और पूजन सामग्रियों को पवित्र कर लेना चाहिए। इसके बाद दाएं हाथ में अक्षत, फूल, जल, पान, सिक्का और सुपारी लेकर दुर्गा पूजन का संकल्प करना चाहिए।

चैत्र नवरात्र पूजा संकल्प मंत्र

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते: 2077, तमेऽब्दे प्रमादी नाम संवत्सरे सूर्य उत्तरायणे बसंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे चैत्र मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदायां तिथौ बुध वासरे (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री दुर्गा पूजनं च महं करिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन निर्विघ्नतापूर्वक कार्य सिद्धयर्थं यथामिलितोपचारे गणपति पूजनं करिष्ये। (अगर आप इतना लंबा मंत्र बोलने में कठिनाई महसूस करते हैं तो ‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः कार्य सिद्धयर्थं कलशाधिष्ठित देवता सहित, श्री दुर्गा पूजनं महं करिष्ये। इस मंत्र से भी संकल्प कर सकते हैं)

चैत्र नवरात्र: प्रथम दिन पूजा और कलश स्थापना विधि

माता की मूर्ति या तस्वीर के सामने मिट्टी के ऊपर कल रखकर हाथ में अक्षत, फूल, और गंगाजल लेकर वरुण देवता का आह्वान करें। कलश में सर्वऔषधी और पंचरत्न डालें। कलश के नीचे रखी मिट्टी में सप्तधान्य और सप्तमृतिका मिलाएं।

आम के पत्ते कलश में डालें। कलश के ऊपर एक पात्र में अनाज भरकर इसके ऊपर एक दीपक प्रज्जवलित करें। कलश में पंचपल्लव डालें इसके ऊपर लाल वस्त्र लपेटकर एक पानी वाला नारियल रखें।

कलश के नीचे मिट्टी में जौ के दानें फैलाएं। देवी का ध्यान करें- खड्गं चक्र गदेषु चाप परिघांछूलं भुशुण्डीं शिर:, शंखं सन्दधतीं करैस्त्रि नयनां सर्वांग भूषावृताम। नीलाश्मद्युतिमास्य पाद दशकां सेवे महाकालिकाम, यामस्तीत स्वपिते हरो कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम॥

इसके बाद गणेशजी और सभी देवी-देवताओं की पूजा करें। अंत में भगवान शिव और ब्रह्मा जी की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद मां भगवती की पूजा करके दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।