छोटी दीपावली / Choti Diwali
नरक चतुर्दशी का महत्व
नरक चतुर्दशी के दिन के साथ कई तरह के महत्व जुड़े हुए हैं और कहा जाता है कि इस दिन प्रातःकाल सूर्य के उगने से पहले जागकर अभ्यंग स्नान करना लाभदायक होता है और जो लोग इस दिन स्नान करते हैं उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है और साथ में ही उसका सौन्दर्य भी बढ़ जाता है. इसके अलावा इस दिन शाम के समय यमराज जी की पूजा करने से अकाल मृत्यु भी टल जाती है.
क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी
कथा 1: भगवान कृष्ण ने किया था नरकासुर की वध
नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाने के पीछे कई सारी कथाएं हैं और इन्हीं कथाओं में से एक कथा भगवान कृष्ण और नरकासुर की है
हमारे पुराणों के मुताबिक नरकासुर धरती माता का पुत्र हुआ करता था और उसने धरती पर आंतक मचा रखा था. भगवान इंद्र ने भगवान विष्णु से इस दानव से लोगों की रक्षा करने की गुहार की थी और भगवान विष्णु ने इंद्र देव को वादा किया था कि वो कृष्ण का अवतार लेकर इसका वध करेंगे.
वहीं जब विष्णु भगवान ने धरती पर कृष्ण जी के रुप में अवतार लिया था, तो उन्होंने अपना वादा पूरा करते हुए इसका वध कर दिया था और इसकी कैद से हजारों महिलाओं को रिहा करवाया था. वहीं इन महिलाओं को समाज में सम्मान दिलवाने के लिए कृष्ण जी ने इन सबसे नरक चतुर्दशी के दिन विवाह कर लिया था, जिसके बाद लोगों ने इस दिन अपने घरों में दीए जलाए थे.
कथा 2: कृष्ण जी की पत्नी के हाथों हुई थी नरकासुर की हत्या
ऊपर बताई गई कथा के अलावा नरकासुर के वध से एक और कथा जुड़ी हुई है और कहा जाता है कि नराकसुर को ब्रह्मा जी से वरदान मिला था, कि उसका वध केवल एक महिला के हाथों ही हो सकता है. जिसके कारण इसका वध कृष्ण जी ने अपनी पत्नी सत्यभामा के हाथों से करवाया था.
कथा 3: मां काली ने मारा था नरकासुर को
एक और कथा के अनुसार इस दानव का वध मां काली के हाथों किया गया था और इसलिए इस दिन को काली चौदस के रुप में पश्चिम बंगाल के लोगों द्वारा मनाया जाता है.
कथा 4: स्वर्ग में मिलती है जगह
मान्यता के अनुसार रतिदेव नामक एक राजा हुआ करता था, जो कि काफी पुण्य का कार्य किया करता था. वहीं एक दिन इस राजा को नर्क में ले जाने के लिए यमराज इनके पास आए. वहीं यमराज द्वारा नर्क में ले जाने की बात जब रंतिदेव को पता चली, तो वो हैरान हो गए और राजा ने यमराज से कहा, कि उन्होंने कभी भी कोई गलत कार्य नहीं किया है, तो फिर उन्हें नर्क में क्यों भेजा जा रहा है.
वहीं रंतिदेव राजा के इस प्रश्न के उत्तर में यमराज ने उनसे कहा, कि एक बार उन्हें अपने घर से एक भूखे पुजारी को खाली पेट भेज दिया था, जिसके कारण वो नर्क में जाएंगे. हालांकि रंतिदेव ने यमराज जी से एक और जिंदगी मांगने की गुहार लगाई और यमराज ने इनकी ये गुहार मान ली और उन्हें जीवन दान दे दिया. जीवनदान मिलने के बाद महाराज साधु संत से मिले और उनसे नर्क ना जाने से जुड़ा हुआ उपाय मांगा. वहीं सांधू संत ने महाराजा को नरक चतुर्दशी के दिन उपवास रखने और भूखे पुजारी को खाना खिलाने की सलाह दी थी, ताकि वो नर्क में जाने से बच सकें.
क्यों कहा जाता है इसे नरक चतुर्दशी
भगवान ने जिस दिन नरकासुर का वध किया था उस दिन चतुर्दशी तिथी थी और इसलिए इस दिन को ‘नरक चौदस’ कहा जाता है. वहीं यह दीपावली के एक दिन पहली आती है तो इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है.
कैसे मनाया जाता है नरक चतुर्दशी का त्योहार
इस दिन अभ्यंग स्नान किया जाता है और ये स्नान करने से पहले चिरचिरी के पत्तों को स्नान करने वाले पानी में डाला जाता है और फिर तेल,चन्दन और उबटन जैसी चीजों से स्नान किया जाता है.
वहीं दक्षिणी भारत में इस दिन लोग जल्दी उठकर पवित्र स्नान करने के बाद कुमकुम और तेल का लेप बनाकर उसे अपने माथे पर लगाते हैं. जबकि तमिलनाडु राज्य के कुछ समुदाय के लोग इस दिन लक्ष्मी मां की पूजा भी करते हैं. वहीं पश्चिम बंगाल के लोगों इस दिन स्नान करने के बाद मां काली की आराधना करते हैं.
इस दिन कड़वा फल तोड़ने का भी रिवाज होता है और कहा जाता है कि इस फल को तोड़ना नरकासुर की हार का प्रतीक होता है.
तिल के तेल और दीपदान महत्व
मान्यता के अनुसार इस दिन शाम को पूजा करने के बाद दीपदान करना चाहिए और घर पर दीप जलाने चाहिए और जो लोग इस दिन ये करते हैं वो अपने पापों को कम कर लते हैं.