दशा माता व्रत की कहानी / Dasha Mata vrat Story
दशा माता की कहानी – Dasha Mata ki kahani
नल नाम का एक राजा था। वह प्रजा का पूरा ध्यान रखता था और प्रजा भी उसे बहुत मान देती थी। उसकी रानी का नाम दमयंती था और वह बहुत धार्मिक प्रवृति की थी। उनके दो पुत्र थे।
एक बार रानी ने दशा माता का व्रत किया और दस गांठों वाला कच्चे सूत का डोरा गले में पहना। राजा की नजर उस डोरे पर पड़ी तो उसे अच्छा नहीं लगा और उसने डोरे को तोड़ कर फेंक दिया। इससे दशा माता क्रुद्ध हो गई।
कुछ ही समय बाद शत्रु राजा ने आक्रमण करके राजा नल को परास्त कर दिया और उनकी सारी धन संपत्ति पर अधिकार कर लिया।
नल दमयंती और उनके पुत्र बेघर हो गये। पूरा परिवार इधर उधर भटकने लगा। कुछ ही समय में उनके वस्त्र मैले कुचैले हो गये और कई जगह से फट गये। भूख से बच्चे व्याकुल होने लगे।
चलते चलते उन्हें एक बंजारों की टोली मिली। बंजारों ने दया करके बच्चों को खाना कपड़े वगैरह दिए। राजा ने निवेदन करके बच्चों को बंजारों के साथ छोड़ दिया ताकि वे सुरक्षित रहें। राजा नल ने उन्हें अपना परिचय नहीं दिया।
राजा रानी आगे बढ़े। रास्ते में राजा की बहन का ससुराल वाला गांव आया। वे गांव के बाहर रुके और बहन को उनके आने की सूचना किसी से करवाई। बहन को उनके निर्धन होने की खबर लगी तो व्यस्त होने का बहाना करके वह खुद नहीं आई , उनके लिए खाना भिजवा दिया।
राजा ने खाना खा लिया पर रानी ने नहीं खाया उसे ढ़ककर जमीन में गाड़ दिया। राजा रानी आगे बढ़े।
चलते चलते एक सरोवर के पास पहुंचे। वहां पता चला की पास में गरीब लोगों को खाना खिलाया जा रहा है।
राजा ने रानी से कहा कि तुम यहाँ विश्राम करो मैं खाना लेकर आता हूँ। राजा पत्तल में खाना लेकर आ रहा था ,रास्ते में एक चील ने झपट्टा मारा तो सारा खाना गिर गया। राजा रानी भूखे ही रह गए। उनका मन खिन्न हो गया और वे आगे बढ़ गये।
शाम को एक गांव में पहुंचे वहाँ एक सेठ के मकान में उन्हें आश्रय मिला। वे वहाँ रुक गए। सेठानी जल्दी उठकर स्नान करके पूजा करती थी।
उस दिन नहाने से पहले सेठानी गले से नौलखा हार निकाल कर नहाने गई तो एक मोर हार को चोंच में दबाकर उड़ा ले गया। सेठानी वापस आई , हार नहीं मिला तो शक नल दमयंती पर गया। तलाशी लेने पर हार तो नहीं मिला पर सेठ ने क्रुद्ध होकर उन्हें वहाँ से भगा दिया ।
राजा रानी शरीर और मन दोनों से बुरी तरह थक गए थे । एक चट्टान पर ही सो गए। रात को नल की नींद खुली। अपनी पत्नी की दशा पर उसे बहुत दुःख हुआ। उसने सोचा इसे छोड़कर चला जाता हूँ। मेरे साथ यह दुखी हो रही है। मैं नहीं मिलूंगा तो यह अपने पीहर चली जाएगी। वहाँ इसे कुछ आराम मिलेगा। ऐसा सोचकर नल सोता छोड़कर चला गया।
बहुत दूर पहुंचा और एक दूसरे राजा के यहाँ उसे घोड़ों की देखभाल का काम मिल गया। अपनी पहचान छुपा कर वहाँ काम करने लगा साथ ही ससुराल की खबर भी पता करता रहा।
दमयंती जब उठी तो पति को न पाकर पहले तो बहुत ढूँढा फिर अपने पिता के राज्य चली गई। उसे बहुत रोना आया। शांत होकर कुछ सोचकर उसने छोटी सुपारियां अपने मुँह में भरकर अपनी शक्ल बदल ली।
एक कुए के पास बैठ गई। महल से दासियाँ कुए पर पानी भरने आई तो उनसे मदद मांग कर काम करने के लिए पिता के महल पहुँच गई। उसकी रानी माता ने भी उसे नहीं पहचाना। उसे रात को तेल बाती का ध्यान रखने का काम दे दिया।
कुछ समय बीता और चैत्र कृष्ण पक्ष की दशमी का दिन आया। महल में दशा माता के पूजन की तैयारी होने लगी। दमयंती ने भी दासियों की मदद से सामान इकठ्ठा किया और दशा माता का विधिपूर्वक पूजन किया। दशा माता का डोरा पहना और उनसे दशा सुधारने , विपत्ति मिटाने तथा परिवार को मिलाने की बार बार प्रार्थना की।
दशा माता की कृपा से नल के मन में पत्नी से मिलने की इच्छा हुई। अब उसकी हालत सुधर गई थी। ससुराल पहुंचा तो पत्नी को वहाँ न पाकर उसे बहुत चिंता हुई। रात को जब तेल बाती देखने दमयंती वहां आई तो पति को देखकर रोने लगी। नल ने उसे नहीं पहचाना। उसने सुपारी मुंह से थूंक दी। नल ने उसे पहचान लिया।
नल ने उसकी आपबीती सुनी और दमयंती के माता पिता को भी सारी बात बता दी । उन्हें वहाँ पाकर माता पिता को बहुत ख़ुशी हुई और उन्हें कहा जितना चाहो आराम से रहो।
कुछ समय नल और दमयंती वहाँ आराम से रहे। फिर अपने राज्य के लिए चल पड़े। दमयंती के पिता ने उन्हें बहुत सा धन और रथ व कुछ सैनिक आदि देकर विदा किया
रास्ते में सेठ के यहाँ पहुंचे तो सेठ सेठानी लज्जित होकर माफ़ी मांगने लगे । उन्होंने बताया कि नौलखा हार दूसरे दिन ही पेड़ पर लटका मिल गया था। नल ने अपनी पहचान बताई तो सेठ ने उनका बहुत आदर सत्कार किया। विदा होकर आगे गए तो बंजारों की टोली मिली , अपने दोनों पुत्रों को वहाँ से अपने साथ लेकर और बंजारों को कुछ धन देकर वे अपने राज्य की और चल पड़े ।
रास्ते में बहन की ससुराल पड़ी। बहन को अपने किये पर बहुत पश्चाताप हुआ। उसने अपने भाई भाभी से माफ़ी मांगी और आदर पूर्वक अपने घर ले जाकर खूब आवभगत की .
वहाँ से विदा होकर अपने राज्य की सीमा पर पहुंचे तो प्रजा को अपने प्रिय राजा रानी के आने का समाचार मिला और सारी प्रजा अपने राजा रानी के स्वागत के लिए उमड़ पड़ी। डरकर शत्रु राजा खुद ही वह राज्य छोड़कर चला गया।
इस तरह से दशा माता की कृपादृष्टि होने से राजा नल को उनका राज्य , महल , रानी और राजकुमार सब मिल गए।
बोलो दशा माता की जय ….