गोवर्धन पूजा कथा / Govardhan Worship Story
गोवर्धन पर्वत से जुड़ी कहानी और पूजा की कथा
गोवर्धन पूजा को मनाने के पीछे एक कथा है और इस कथा के अनुसार भगवान कृष्ण जी ने लोगों को गोवर्धन पूजा करने को सलाह दी थी. कहा जाता है कि एक दिन जब कृष्ण जी की मां यशोदा भगवान इंद्र की पूजा करने की तैयारी कर रही थी, तो उस समय कृष्ण जी ने अपनी मां से पूछा था, कि वो इंद्र भगवान की पूजा क्यों कर रही हैं ? कृष्ण जी के इस सवाल के जवाब में उनकी मां ने उनसे कहा था कि सारे गांव वाले और वो भगवान इंद्र जी की पूजा इसलिए कर रहे हैं, ताकि उनके गांव में बारिश हो सके. बारिश के चलते उनके गांव में अच्छे से फसलों की और घास की पैदावार होगी और ऐसा होने से गायों को खाने के लिए चारा मिल सकेगा. वहीं अपनी मां की बात सुनकर कान्हा ने एकदम से कहा कि अगर ऐसी बात है तो हमें इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए. क्योंकि इस पर्वत पर जाकर ही गायों को खाने के लिए घास मिलती है. कृष्ण जी की इस बात का असर उनकी मां के साथ साथ ब्रजवासियों पर भी पड़ा और ब्रजवासियों ने इंद्र देव की पूजा करने की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी शुरू कर दी.
वहीं ब्रजवासियों को गोवर्धन की पूजा करते देख इंद्र देवता नाराज हो गए और उन्होंने क्रोध में काफी तेज बारिश करना शुरू कर दिया. तेज बारिश के कारण गांव के लोगों को काफी परेशानी होने लगी और ये लोग कृष्ण भगवान के पास मदद मांगने चले गए. वहीं लगातार तेज बारिश के कारण लोगों के घरों में भी पानी भरने लगा और उन्हें सिर छुपाने के लिए कोई भी जगह नहीं मिल रही थी. अपने गांव के लोगों की बारिश से रक्षा करने के लिए कृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया, जिसके बाद ब्रजवासी इस पर्वत के नीचे जाकर खड़े हो गए. भगवान ने इस पर्वत को एक सप्ताह तक उठाए रखा था. वहीं जब इंद्र देव को पता चला कि कृष्ण जी भगवान विष्णु का रुप हैं तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने बारिश को रोक दिया. बारिश रुकने के बाद कृष्ण जी ने पर्वत को नीचे रख दिया और उन्होंने अपने गांव के लोगों को हर साल गोवर्धन पूजा मनाने का आदेश दिया, जिसके बाद से ये त्योहार हर साल मनाया जाने लगा.
पाड़वा और बलिप्रतिपदा त्योहार
इस दिन महाराष्ट्र राज्य में पड़वा और बलिप्रतिपदा त्योहार भी मनाया जाता है और इस राज्य के लोग इस त्योहार को भगवान विष्णु के अवतार वामन की राजा बाली पर हुई जीत की खुशी में मनाते हैं. वहीं इस दिन गुजराती नववर्ष की शुरुआत भी होती है.
गोवर्धन पूजा को क्यों कहा जाता है अन्नकूट
इस पूजा को करने के लिए अन्नकूट बनाकर यशोदा नंदन कृष्ण और गोर्वर्धन पर्वत की आराधना की जाती है. जिसके चलते इस पर्व को अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है
अन्नकूट एक प्रकार का खाना होता है जिसे कई तरह की सब्जियां, दूध और चावल का प्रयोग करके बनाया जाता है जाता है.
गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा में गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती हैं. यह दिवस यह सन्देश देता हैं कि हमारा जीवन प्रकृति की हर एक चीज़ पर निर्भर करता हैं जैसे पेड़-पौधों, पशु-पक्षी, नदी और पर्वत आदि इसलिए हमें उन सभी का धन्यवाद देना चाहिये. भारत देश में जलवायु संतुलन का विशेष कारण पर्वत मालायें एवम नदियाँ हैं. इस प्रकार यह दिन इन सभी प्राकृतिक धन सम्पति के प्रति हमारी भावना को व्यक्त करता हैं.
इस दिन विशेष रूप से गाय माता की पूजा का महत्व होता हैं. उनके दूध, घी, छांछ, दही, मक्खन यहाँ तक की गोबर एवम मूत्र से भी मानव जाति का कल्याण हुआ हैं. ऐसे में गाय जो हिन्दू धर्म में गंगा नदी के तुल्य मानी जाती हैं, को इस दिन पूजा जाता हैं.
गोवर्धन पूजा को अन्न कूट भी कहा जाता हैं. कई जगहों में भंडारा होता हैं. आजकल यह अन्नकूट महीनो तक चलता हैं. इसे आधुनिक युग में पार्टी की तरह मनाया जाने लगा हैं.
गोवर्धन पूजा विधि
इस दिन भगवान कृष्ण एवम गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती हैं. खासतौर पर किसान इस पूजा को करते है.| इसके लिए घरों में खेत की शुद्ध मिट्टी अथवा गाय के गोबर से घर के द्वार पर,घर के आँगन अथवा खेत में गोवर्धन पर्वत बनायें जाते हैं. और उन्हें 56 भोग का नैवेद्य चढ़ाया जाता हैं.
सुबह जल्दी स्नान किया जाता हैं.
घर की रसौई में ताजे पकवान बनाये जाते हैं.
घर के आँगन में अथवा खेत में गोबर से भगवान गोवर्धन की प्रतिमा बनाई जाती हैं.
साथ में गाय, भैंस, खेत खलियान, बैल, खेत के औजार, दूध दही एवम घी वाली, चूल्हा आदि को गोबर अथवा मिट्टी से बनाया जाता हैं. इस पूजा के जरिये खेती से जुड़ी सभी चीजो एवम जलवायु प्राकृतिक साधनों की पूजा की जाती हैं इस लिए जितना संभव हो उतना बनाकर पूजा में शामिल किया जाता हैं.
इसके बाद पूजा की जाती हैं.
नैवेद्य चढ़ाया जाता हैं.
कृष्ण भगवान की आरती की जाती हैं.
इस दिन पूरा कुटुंब एक साथ भोजन करता हैं.
कैसे मनाई जाती है गोवर्धन पूजा
इस पूजा के दिन लोग गाय के गोबर से ये पर्वत बनाते हैं और उसकी आराधना करते हैं. पूजा करने के अलावा लोग इस दिन 56 या 108 चीजों का भोग भी बनाते हैं और इस भोग को भगवान कृष्ण जी और गोवर्धन पर्वत को अर्पित करते हैं. हालांकि भगवान कृष्ण जी को भोग लगाने से पहले उनका दूध से स्नान किया जाता है और उन्हें नए कपड़े भी पहनाए जाते हैं.
गोवर्धन पर्वत परिक्रमा
इस दिन कई लोग मथुरा वृन्दावन उत्तरपदेश के समीप स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं. हिन्दू धर्म में परिक्रमा का बहुत अधिक महत्व होता हैं. घर में पूजा से ज्यादा इस परिक्रमा का महत्व होता हैं.