राम नवमी कथा / Ram Navami Storya

राम नवमी महत्व 

राम जन्म को राम नवमी के रूप में पुरे देश में मनाया जाता हैं, इनका जन्म अभिजित नक्षत्र में दोपहर बारह बजे चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी को हुआ था, इस दिन सभी भक्तजन अपना चैत्र नव रात्री का उपवास दोपहर 12 बजे पूरा करते हैं. घरो में खीर पुड़ी और हलवे का भोग बनाया जाता हैं. कई जगहों पर राम स्त्रोत, राम बाण, अखंड रामायण आदि का पाठ होता हैं, रथ यात्रा निकाली जाती हैं, मेला सजाया जाता हैं.

 राम अवतार कथा :

जब धरती पर असुरों का आतंक बढ़ गया,  तब भगवान विष्णु ने मानव के रूप में जन्म लिया और असुरों का संहार कर धरती को पुनः पाप मुक्त किया. कहते हैं जब जब धरा पर बुराई का भार अच्छाई से अधिक होता है, तब तब भगवान स्वयं धरती पर आकर धरती को संतुलित करते हैं और मनुष्य जाति का उद्धार करते हैं. उसी तरह जब धरती पर रावण और राक्षसी ताड़का जैसे असुरों  का आतंक सीमा पार हो गया, तब भगवान विष्णु एवम माता लक्ष्मी ने राम एवम सीता के रूप में धरती पर जन्म लिया और असुरों के संहार के साथ-साथ मानव जीवन एवम एक प्रजा पालक की मर्यादा का उदहारण प्रस्तुत किया.

 राम जन्म 

भगवान श्री राम अयोध्या के महाराज दशरथ एवम महारानी कौशल्या के पुत्र थे.महाराज दशरथ ने अपनी एक मात्र पुत्री शांता को  गोद दे दिया था, जिसके बाद उन्हें कई वर्षो तक कोई संतान नहीं हुई, जिसके लिए उन्होंने पुत्र कमेक्षी यज्ञ किया, जिससे फलस्वरूप उन्हे चार पुत्रो की प्राप्ति हुई, जिनमे जेष्ठ पुत्र राम थे और अन्य तीन भरत, लक्ष्मण एवम शत्रुघ्न थे, जिनकी माता कैकई और सुमित्रा थी.

 

राम नवमी के दिन भगवान राम का जन्म हुआ था, यह दिन चैत्र माह की शुक्ल पक्ष नवमी के दिन आता हैं, जिसे राम जयंती भी कहा जाता हैं. राम नवमी को बड़े हर्षों उल्लास के साथ मनाया जाता हैं. कहते हैं उस दिन दोपहर के 12 बजे राम का जन्म हुआ था. अतः भक्त दोपहर बाद ही अपने नौ दिन के माता के उपवास को खोलते हैं और अन्न ग्रहण करते है.

 राम के गुरु :

ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ भगवान राम के गुरु थे, जिन्होंने उन्हें वैदिक ज्ञान के साथ- साथ शस्त्र अस्त्र में निपूर्ण किया. ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र ने भी राम को शस्त्र विद्या दी और इन्ही के मार्गदर्शन में राम ने तड़का वध एवम अहिल्या उद्धार किया और सीता स्वयम्वर में हिस्सा लिया और सीता से विवाह किया.

राम वनवास कथा

महाराज दशरथ अपने जेष्ठ पुत्र राम को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी अन्य पत्नी कैकई की मंशा थी, कि उनका पुत्र भरत सिंहासन पर बैठे, इसलिए उन्होंने राजा दशरथ से अपने दो वरदान (यह वे वरदान थे, जिनका वचन राजा दशरथ ने तब दिया था, जब युद्ध के दौरान रानी कैकई ने राजा दशरथ के प्राणों की रक्षा की थी) मांगे जिसमे उन्होंने भरत का राज्य अभिषेक और राम के लिए वनवास माँगा और इस तरह भगवान राम को चौदह वर्षो का वनवास मिला. इस वनवास में सीता एवम भाई लक्ष्मण ने भी अपने भाई के साथ जाना स्वीकार किया. साथ ही भरत ने भी भातृप्रेम को सर्वोपरि रखा और एक वनवासी की तरह ही चौदह वर्षो तक अयोध्या को एक अमानत के रूप में स्वीकार किया.

वनवास काल :

इस वनवास में भगवान राम ने कई असुरों का संहार किया. शायद कैकई के वचन केवल आधार थे, क्यूंकि नियति कुछ इस प्रकार थी. भगवान राम ने अपने वनवास काल में हनुमान जैसे सेवक, सुग्रीव जैसे मित्र को पाया. नियति ने सीता अपहरण को निम्मित बनाकर रावण का संहार किया. सीता जन्म का उद्देश्य ही रावण संहार था, जिसे श्री राम ने पूरा कर मनुष्य जाति का उद्धार किया.

राम राज्य :

श्री ने वनवास काल पूर्ण किया और भरत ने अपने बड़े भ्राता को अयोध्या का राज पाठ सौंपा. मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने एक ऐसे राम राज्य की स्थापना की. जिसे सदैव आदर्श के रूप में देखा गया. राम ने प्रजा हित के सीता का परित्याग किया. अपने कर्तव्यों के लिए उन्होंने स्वहित को द्वीतीय स्थान दिया और इस तरह राम राज्य की स्थापना की.

राम के लव कुश :

सीता ने प्रजाहित के लिए परित्याग स्वीकार किया और अपना जीवन वाल्मीकि आश्रम में बिताया और उस समय सीता ने दो पुत्रो को जन्म दिया जिनका नाम लव कुश था. यह दोनों ही पिता के समान तेजस्वी थे. इन्ही के हाथो राम ने अपने राज्य को सौंपा और स्वयं ने अपने विष्णु अवतार को धारण कर अपने मानव जीवन को छोड़ा.

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