शब-ए-मेराज या फिर जिसे शबे मेराज के नाम से भी जाना जाता है, रजब की सत्ताईसवीं रात को मनाया जाने वाला एक प्रमुख इस्लामिक पर्व है। इस पर्व को इस्लाम में काफी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसी रात मोहम्मद साहब ने मक्का से बैत अल मुखद्दस तक की यात्रा की फिर उसके बाद उन्होंने सातों असमानों की सैर करते हुए अल्लाह का दर्शन प्राप्त किया।
इस्लामिक मान्यताओं में इस घटना को इसरा और मेराज के नाम से जाना जाता है और इसी घटना के वजह से शब-ए-मेराज का यह त्योहार मनाया जाता है।
शब-ए-मेराज क्यों मनाया जाता है? (Why Do We Celebrate Shab e-Meraj)
शब-ए-मेराज मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाया जाना वाला एक प्रमुख पर्व है। यह घटना पैगंबर मुहम्मद साहब के जीवन का एक प्रमुख हिस्सा है और इसे किसी चमत्कार से कम नही माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन मुहम्मद साहब को इसरा और मेराज की यात्रा के दौरान अल्लाह के विभिन्न निशानियों का अनुभव हुआ था। इस यात्रा के पहले हिस्से को इसरा के नाम से जाना जाता है, वहीं दूसरे हिस्से को मेराज के नाम से लेकिन साधरणतः दोनो घटनाओं को मेराज की ही संज्ञा दी जाती है।
इसरा का अर्थ होता है, रात के एक भाग में चलना। इस दौरान अल्लाह के नबी पैगंबर मोहम्मद साहब ने अल्लाह की कृपा से मक्का स्थित मस्जिदे हराम से लेकर फिलस्तीन में मौजूद अक़्सा मस्जिद की चालीस दिन की दूरी मात्र रात के थोड़े से हिस्सें में ही पूरी कर ली थी।
इसके बाद के दूसरे सफर के हिस्से को मेराज के नाम से जाना जाता है, जिसका मतलब होता है चढ़ने का माध्यम या फिर सीढ़ी क्योंकि मस्जिदे अक्सा से मोहम्मद साहब को आसमानों पर ले जाया गया जहां उनकी मुलाकत अलग-अलग पैगंबरों और महत्वपूर्ण लोगो से हुई। इसके पश्चात आखिर में उनकी मुलाकात अल्लाह से हुई तभी से इस विशेष दिन पर शब-ए-मेराज नाम का यह महत्वपूर्ण पर्व मनाया जाने लगा।
शब-ए-मेराज कैसे मनाया जाता है? (How Do We Celebrate Shab e-Meraj)
पूरे विश्व भर के मुस्लिम समुदाय द्वारा शब-ए-मेराज के इस पर्व को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन रात के समय में विशेष प्रार्थनाओं का आयोजन किया जाता है और इसके साथ ही कई इस दिन कई लोगो द्वारा उपवास भी रखा जाता है। इसके साथ ही अल्लाह से मुहम्मद साहब की मुलाकात रात का जश्न मनाने के लिए इस दिन मस्जिदों को भी विशेष रुप से सजाया जाता है और दिये भी जलाये जाते है। लोग सुबह में ही नहा धोकर अपना सारा दिन खुदा की इबादत में बिताते है।
रात में इस दिन की अलग ही छंटा देखने को मिलती है क्योंकि रात में मस्जिदों में अच्छी खासी तादाद में लोग इकठ्ठा होते है। जहां पैगंबर मुहम्मद साहब को याद करते हुए अल्लाह की प्रार्थना करते है। इसके साथ ही कई जगहों पर जुलूस और मेलों का भी आयोजन किया जाता है। वैसे तो कई लोगो द्वारा रजब के पुरे महीने रोजा रखा जाता है लेकिन इस महीने की 26 और 27 तारीख को रोजा रखने का विशेष फल प्राप्त होता है।
शब-ए-मेराज की आधुनिक परंपरा (Modern Tradition of Shab e-Meraj)
हर पर्व की तरह आज के समय में शब-ए-मेराज के पर्व में भी कई सारे परिवर्तन आ गये हैं। इनमें से कई सारे परिवर्तन अच्छे है तो वही कई सारे परिवर्तन वर्तमान समय के अनुरुप नही है। पहले के अपेक्षा आज के समय में यह पर्व काफी बड़े स्तर पर मनाया जाता है।
वर्तमान में लोग अब इस पर्व का पहले की तरह पाबंदी के साथ पालन नही करते, जहां पहले लोग आवश्यक रुप से इस दिन रोजा रखते थे, वहीं आज के समय बहुत कम लोग इस ही इस दिन पर रोजे का पालन करते हैं। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शब-ए-मेराज के इस पर्व का पारंपरिक रुप बना रहे, जिससे कि यह पर्व आने वाले समय में और भी ज्यादे लोकप्रिय हो सके।
शब-ए-मेराज का महत्व (Significance of Shab e-Meraj)
शब-ए-मेराज का यह पर्व इस्लाम धर्म में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि इसी रात पैगंबर मोहम्मद साबह ने सातों आसमानों की यात्रा की और अपने पहले के विभिन्न पैगंबरों और महत्वपूर्ण लोगों से मुलाकात की, इसके साथ ही इसी रात उन्होंने स्वर्गलोक में अल्लाह से मुलाकात की थी। वास्तव में यह घटना इस्लामिक मान्यताओं में काफी महत्व रखती है क्योंकि दो भागों में बंटी यात्रा जिसे इसरा और मेराज के नाम से जाना जाता है पैगंबर मोहम्मद साहब द्वारा शरीर सहित अल्लाह के दर्शन प्राप्त करने की घटना को प्रदर्शित करता है।
रजब माह के सत्ताइसवीं तारीख की रात में की गई यह यात्रा कोई साधरण बात नही है क्योंकि इस दिन पैगंबर मोहम्मद द्वारा मक्का से येरुशलम तक की गयी यह पहली यात्रा जिसे इसरा नाम से जाना जाता है मात्र कुछ ही घंटों में पूरी कर ली गयी थी, जबकि उस समय इस यात्रा में लगभग 40 दिन लगते थे लेकिन यह ईश्वर का चमत्कार ही था कि मोहम्मद साहब ने 40 दिनों की यह यात्रा रात के कुछ घंटों में ही तय कर ली थी। जोकि हमें यह बताता है समस्याएं कितनी भी क्यों ना हो लेकिन यदि हम सच्चे और ईमान के पक्के होंगे तो ईश्वर हमारी मदद अवश्य करेगा।
अल्लाह ने खुद हजरत जिब्रील को पैगंबर मुहम्मद को अपने पास लाने के लिए भेजा था। सातों असमान की इस यात्राओं में उनकी कई पैगंबरों और अलौकिक पुरुषों से मुलाकात हुई। जब वह स्वर्गलोक में पहुंचे तो वहां उन्हें अल्लाह के दर्शन भी हुई और खुद अल्लाह ने उन्हें मानवता के भलाई के पैगाम धरती पर पहुंचाने को कहा और इसके साथ ही उन्हें मानवता को पांच बार नमाज का आदेश देने को भी कहा, इन्हीं अद्भुत घटनाओं के कारण शब-ए-मेराज के पर्व को इस्लाम में इतना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
शब-ए-मेराज का इतिहास (History of Shab e-Meraj)
शब-ए-मेराज की घटना इस्लामिक इतिहास में हुए सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं और चमत्कारों में से एक है। इस रात पैगंबर मोहम्मद साहब ने मक्का से येरुशलम की चालीस दिनों की यात्रा मात्र रात के कुछ घंटों में तय की थी और सात आसमानों की यात्रा करके शरीर सहित अल्लाहताला के दर्शन प्राप्त किये थे।
इस यात्रा के दो भाग है इसरा और मेराज, रजब की सत्ताइसवी तारीख की रात को पैगंबर मोहम्मद साहब ने मक्का से येरुशलम तक की यात्रा मात्र कुछ घंटों में पूरी की थी, येरुशलम पहुंचने के बाद उन्होंने ने वहां की अक्सा मस्जिद में नमाज अदा भी अदा की थी।
इसके बाद की उनकी दूसरी यात्रा को मेराज के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ सीढ़ी या चढ़ने का माध्यम होता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि हजरत जीब्रिल की सहायता से पैगंबर मोहम्मद सात आसमानों की यात्रा करते हुए स्वर्ग में पहुचें थे, जहां उन्हें अल्लाहताला के दर्शन प्राप्त हुए।
शब-ए-मेराज की घटना
इस्लामिक मान्यताओं और ग्रंथों के अनुसार अल्लाह के पैगंबर मुहम्मद साहब अपने घर में सोये हुए थे। तभी उनके पास एक सज्जन आये जोकि कोई और नही बल्कि की स्वयं खुदा के फरिश्ते हजरत जिब्रील थे।
वह मोहम्मद साहब को काबा के पास हतीम में ले गये और उनका सीना चीरा और उनका दिल निकालकर उसे एक सोने के तश्त में धोया, यह सोने का तश्त ईमान और नेकी से भरा हुआ था। इसके पश्चात हजरत जिब्रील ने पैगंबर मोहम्मद साबह का दिल पहले की तरह उनके सीने में वापस रख दिया। इसके बाद शुरु हुई इसरा की यात्रा उसके बाद उनके पास एक जानवर लाया गया।
यह जानवर घोड़े से थोड़ा छोटा और गधे से थोड़ा बड़ा था, जोकि सफेद रंग का था। उस जानवर को बुराक नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है जब बुराक को पैगंबर मुहम्मद साहब के सामने लाया गया तो उसपर जैन कसी हुई थी, लेकिन जब उसपर नकील जाली गई तो वह कुछ आनाकानी करने लगा।
जब उसे इस बात का पता चला उसके सामने खुद अल्लाह के पैगंबर मोहम्मद साहब हैं, तो उसके पसीने छूट गये। इसके बाद मोहम्मद साहब उस बुराक पर सवार होकर बैतुल मुक़दिस में पहुंचे जहां वह बुराक को बांध कर मस्जिद के अंदर नमाज पढ़ने चले गये।
नमाज के बाद हजरत जिब्रील ने पैगंबर मोहम्मद का हांथ पकड़ा और उन्हें सातों आसमानों की यात्रा कराते हुए स्वर्गलोक में अल्लाहताला के पास ले गये। इन सातों आसमानों की यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात अल्लाह के विभिन्न पैगंबरों और दिव्य पुरुषों से हुई। पहले आसमान पर उनकी मुलाकात हजरत आदम से, दूसरे आसमान पर हजरत ईसा से, हजरत यहया से , तीसरे आसमान पर यूसूफ से, चौथे आसमान पर हजरत इदरीस से, पांचवें आसमान पर हजरत हारुन से और छठंवे आसमान पर हजरत मूसा से हुई।