मंगला गौरी व्रत की कथा / The story of Mangala Gauri Vrat
एक राजा के दो रानियां थी।
बड़ी रानी का नाम दुहाग था और छोटी रानी का नाम सुहाग था। छोटी रानी व्रत उपवास और धर्म आदि करती रहती थी। बड़ी रानी को यह सब पसंद नहीं था। छोटी रानी शांत स्वाभाव की और बड़ी रानी क्रोधी स्वाभाव की थी।
छोटी और बड़ी रानी ने मंगला गौरी का डोरा ( संकल्प सूत्र ) लिया था।
बड़ी रानी ने किसी बात पर क्रोध में आकर डोरा तोड़ दिया। वह पागल हो गई।
देवी ने स्वप्न में आकर उसे बताया की डोरा तोड़ने के कारण वह पागल हुई है।
उसने यह बात छोटी रानी को बताई।
दोनों रानियों ने देवी के चरणों में गिरकर क्षमा मांगी।
रानी ठीक हो गई।
सावन महीना आने पर मंगला गौरी का व्रत किया।
भक्ति भाव से पूजा की और कथा सुनी।
हवन किया , ब्राह्मण जोड़े जिमाये , नगर में ढिंढोरा पिटवाया कि सभी भक्ति भाव से और विधि विधान से सम्पूर्ण व्रत करें।
हे माँ , कहानी कहनेवाले को , सुनने वाले को और हुंकार भरने वाले को सम्पूर्ण फल मिले।
माँ मंगला गौरी की जय !!!